३१ जुलाई को पंडित पन्नालाल घोष जी का जन्मदिन है। वर्ष १९११ में वर्तमान बांगला देश के बारासात में आपने जन्म लिया, और इस लिहाज से उनके जन्म के सौ वर्ष पूरे हुए। संस्कृत में कहा जाता है - जीवेम शरदः शतं। पन्नालाल जी इस शतं की सीमा को पार करते हुए अभी आगे के कई सौ वर्षों तक हमारे हृदयों में जीवित रहने वाले हैं। बांसुरी का एक प्रकार से पुनर्संस्थापन किया था पन्ना बाबू ने। शास्त्रीय संगीत जगत से जुडा हुआ लगभग प्रत्येक बांसुरी वादक पन्ना लाल जी का ऋणी है।
मेरे गुरुदेव, विश्व विख्यात बांसुरी वादक पंडित रघुनाथ सेठ जी पन्नालाल जी के शागिर्द हैं। मुंबई में जब वे पन्नालाल जी से सीखने लगे तो उनको बांसुरी के कई गुर सीखने को मिले। बाद में मुझे तथा अन्य शिष्यों को गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत इस का लाभ मिला। संगीत की परम्परानुसार पन्नालाल जी मेरे दादा गुरु हुए।
पन्नालाल जी की बांसुरी जब आज भी सुनते हैं तो उनकी मिठास तथा विविधता का कोई जोड़ नज़र नहीं आता। उनका बजाया हुआ राग मारवा तथा अन्य राग जब आज सुनते हैं तो अध्यात्मिक अहसास होने लगता है। पन्नालाल जी ने कई फिल्मों में भी बांसुरी बजाई थी, जो आज भी अद्वितीय है।
मेरी असीम श्रद्धांजलि तथा प्रणाम बांसुरी के इस जादूगर को।
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