अक्सर हमें यह सुनाई और दिखाई पड़ता है की फलां फलां व्यक्ति से यह काम नहीं हो पायेगा क्योंकि - वह तो कलाकार है। कलाकार को लोग प्रशासनिक कार्यों के योग्य नहीं समझते। कई बार तो यह भी सुनाई पड़ता है की वह बड़ा भावुक है, क्योंकि कलाकार है। अभी तक कला की शिक्षा को किसी अन्य विषय की शिक्षा से दोयम दर्जे की माना जाता है। कभी कभी तो स्वयं कलाकार ही यह भेद भाव करने लगते हैं।
क्या कलाकार और अन्य लोगों में कोई फर्क है? क्या कलाकार में वाकई प्रशासनिक क्षमता नहीं होती? क्या अन्य लोग भावुक नहीं होते? क्या कलाकार होना एक अपराध है? क्या कलाकार और अन्य तथाकथित सामान्य जन में कोई विभाजन है?
आईये पहले देखते हैं की कलाकार किसे कहते हैं। अभिनव गुप्त के अनुसार हर वह व्यक्ति, जिसमें प्रतिभा तथा अपने मन के भावों को व्यक्त करने की क्षमता हो, कलाकार है। अर्थात कलाकार में दो गुण ज्यादह हैं, अन्य व्यक्तियों से। वे सामान्य जन की तुलना में विशिष्ट होते हैं क्योंकि वे प्रतिभा तथा उपाख्या के गुण से युक्त होते हैं. इसका अर्थ है की समान्य जन जो कार्य कर सकते हैं वे सभी कार्य कलाकारों द्वारा संपादित हो सकते हैं। बल्कि यह अवश्य सत्य है की कलाकारों द्वारा किये जाने वाले कार्य सामान्य जन नहीं कर सकते।
अपनी भावनाओं को सीधे सीधे न कह कर उनको कला के माध्यम से कहना ही कलाकार की विशेषता है। इसके लिए अपनी भावनाओं पर काबू रखना कलाकार की दूसरी विशेषता है, जो सामान्य जन में प्रायः नहीं होती। अतः कलाकार भावुक तो किसी भी अन्य व्यक्ति की तरह ही होते हैं परन्तु उनको यह भली भांति पता रहता है की अपनी भावनाओं पर काबू कैसे रखा जाए।
ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं जहां कलाकारों ने प्रशासनिक कार्यों का सम्पादन बड़ी ही कुशलता से किया है। समाज उनको मौक़ा तो दे कर देखे!
मेरी यह पक्की धारणा है की समाज के इन पूर्वाग्रहों को हटा कर कलाकारों को बराबरी के मौके देने चाहिए। उनसे किसी मंगल गृह वासी की तरह व्यवहार न कर सामान्य जन की तरह ही व्यवहार करना चाहिए।
इति।
क्या कलाकार और अन्य लोगों में कोई फर्क है? क्या कलाकार में वाकई प्रशासनिक क्षमता नहीं होती? क्या अन्य लोग भावुक नहीं होते? क्या कलाकार होना एक अपराध है? क्या कलाकार और अन्य तथाकथित सामान्य जन में कोई विभाजन है?
आईये पहले देखते हैं की कलाकार किसे कहते हैं। अभिनव गुप्त के अनुसार हर वह व्यक्ति, जिसमें प्रतिभा तथा अपने मन के भावों को व्यक्त करने की क्षमता हो, कलाकार है। अर्थात कलाकार में दो गुण ज्यादह हैं, अन्य व्यक्तियों से। वे सामान्य जन की तुलना में विशिष्ट होते हैं क्योंकि वे प्रतिभा तथा उपाख्या के गुण से युक्त होते हैं. इसका अर्थ है की समान्य जन जो कार्य कर सकते हैं वे सभी कार्य कलाकारों द्वारा संपादित हो सकते हैं। बल्कि यह अवश्य सत्य है की कलाकारों द्वारा किये जाने वाले कार्य सामान्य जन नहीं कर सकते।
अपनी भावनाओं को सीधे सीधे न कह कर उनको कला के माध्यम से कहना ही कलाकार की विशेषता है। इसके लिए अपनी भावनाओं पर काबू रखना कलाकार की दूसरी विशेषता है, जो सामान्य जन में प्रायः नहीं होती। अतः कलाकार भावुक तो किसी भी अन्य व्यक्ति की तरह ही होते हैं परन्तु उनको यह भली भांति पता रहता है की अपनी भावनाओं पर काबू कैसे रखा जाए।
ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं जहां कलाकारों ने प्रशासनिक कार्यों का सम्पादन बड़ी ही कुशलता से किया है। समाज उनको मौक़ा तो दे कर देखे!
मेरी यह पक्की धारणा है की समाज के इन पूर्वाग्रहों को हटा कर कलाकारों को बराबरी के मौके देने चाहिए। उनसे किसी मंगल गृह वासी की तरह व्यवहार न कर सामान्य जन की तरह ही व्यवहार करना चाहिए।
इति।