About Me

My photo
New Delhi, Delhi, India
Flutist of Indian Classical music genre

Wednesday, November 23, 2016

नोटबन्दी और मैं ......

नोटबन्दी और मैं ...... 



यह तो पहले से ही तय था की ब्लॉग मेरी मर्ज़ी या कह लें मौज आने पर ही लिखूँगा।  मन हो तो कई और मन न हो तो एक भी नहीं। इसी नीति पर चलते हुए आज एक और पोस्ट लिख रहा हूँ।

दरअसल 500 - 1000 के नोटों को बन्द करने पर जो तूफ़ान सा आ गया है, उस पर मैंने अब तक अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी। सोचा आज इस विषय पर लिखूं।  कुछ लोगों को पसन्द आये और शायद कुछ को न भी आये।  पर मैंने इसकी परवाह कब की है जो आज करूँगा? हाँ, इतना अवश्य है की उधार का नहीं पर जो कुछ खुद पर गुज़री है उसी के आधार पर लिखूँगा।

8 नवम्बर की तारीख से ही शुरू करता हूँ।  शाम को टीवी चैनल्स पर खबर आयी कि रात को 8 बजे प्रधानमंत्री जी राष्ट्र को सम्बोधित करने वाले हैं।  मुझे कुछ अटपटा सा लगा क्योंकि मन की बात तो वे करते ही रहते हैं। फिर इस विशेष सम्बोधन की क्या ज़रुरत थी? सो सब कुछ छोड़ कर टीवी देखने लगा। टीवी के ज्ञानी पत्रकार अटकलें भी लगाने लगे थे कि मोदी जी आखिर क्या कहना चाहते होंगे। कुछ ने तो 2  और 2 चार भी करना शुरू कर दिया था- दिन में मोदी जी तीनों सेनाओं के प्रमुखों से अलग अलग मिले हैं अतः ज़रूर पकिस्तान के साथ युद्ध से जुड़ा हुआ कोई मुद्दा होगा। पर जब मोदी जी ने बोलना शुरू किया तो सबको अचम्भे में डाल दिया। यह तो मुद्दा ही कुछ और निकला!

घोषणा होने के बाद मेरे घर का तो दृश्य ही बदल गया। घर के कामों के लिए हाल ही में नगदी निकली थी। एटीएम से निकाली थी तो ज़ाहिर है "वही" नोट थे। मेरे तथा पत्नी के पर्स में जो भी नगदी थी (कुछ छिपा हुआ स्त्री धन भी) सब गिनी गयी और इस निष्कर्ष पर पहुँचा गया कि कुछ दिन का इंतज़ार किया जा सकता है। 100 तथा 10 -20 के जितने नोट घर में थे वे तात्कालिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पर्याप्त लगे। इस आर्थिक माथापच्ची के बीच टीवी भी देखा जा रहा था तथा उसमें सर्वज्ञानी पत्रकारों को भी चकराया हुआ देख कर परम सन्तुष्टि का अनुभव भी हो रहा था। अगले दिन बैंक तो बन्द ही थे।

पत्नी के विद्यालय में एक एटीएम है, जहाँ बिलकुल भीड़ नहीं थी तथा बड़े आराम से 100 - 100  के नोटों की शक्ल में 2000 रूपये निकल गए।  अब तो बिलकुल भी चिंता न थी।  अपने राम मस्त थे। महानगर में रहने के कारण राशन, दूध, सब्जी, फल, सीएनजी; यानि  सब कुछ तो कार्ड से खरीदा जा सकता था।

मज़ा तो तब आया जब हम कपड़ों की शॉपिंग करने निकले। बेटे के लिए स्वेटर आदि लेने आवश्यक हो गए थे। बाजार पहुंचे तो वहां का नज़ारा भी बदला  हुआ था। भीड़ बिलकुल कम और दुकानदार बिलकुल वीआईपी की तरह स्वागत करते दिखे। फुटपाथ पर भी पेटीएम के बोर्ड लगे थे।  अर्थात यदि नकदी न हो तो भी कोई बात नहीं. टैक्सी और ऑटो वाले तो पहले से ही कार्ड तथा पेटीएम से पैसे लेने लगे थे।

कुछ दिनों के बाद अपनी नगदी लेकर बैंक पहुँचा तो वहां भी सुखद अनुभव ही हुआ। बैंक के लोगों ने दो तीन फॉर्म दिए भरने को तथा पैसे जमा कर लिए। पूरी प्रक्रिया में 10 मिनटों से ज़्यादा नहीं लगे। भीड़ बिलकुल नहीं थी। विजयी मुद्रा में घर वापसी हुई और पत्नी से शाबासी मिली वह अलग।

व्हाटसअप तथा फ़ेसबुक में विभिन्न पोस्ट्स पढ़ कर जो अंदाज़ लगाया था वह बिलकुल ही निराधार निकला।  हाँ, एटीएम के आगे लाईनें ज़रूर लम्बी दिखीं। पर अब तो वो भी छोटी होती दिखाई दे रही हैं। और वह भी तब जब 50 दिनों  में से अभी 15  दिन  ही तो बीते हैं!

Tuesday, November 22, 2016

तो बालमुरलीकृष्णन नहीं रहे ......

तो बालमुरलीकृष्णन नहीं रहे ...... 


1988 में एक अद्भुत वीडियो आया था - मिले सुर मेरा तुम्हारा. संगीत एवं कला जगत की शीर्ष विभूतियों को लेकर बना दूरदर्शन का यह वीडियो आज भी अप्रतिम है. संगीत सीखते हुए तब कुछ वर्ष ही हुए थे तथा उत्तर भारतीय प्रमुख संगीतज्ञों से तो मैं परिचित था, परन्तु इस वीडियो के माध्यम से मेरा प्रथम परिचय दक्षिण भारत के कुछ महान संगीतज्ञों से हुआ जिनमें विद्वान एम0 बालमुरलीकृष्णन भी एक थे. उनकी एक तान और स्वर्णिम मुस्कान सीधे दिल को जा लगी. 1997-98 में भारत की स्वतंत्रता के स्वर्ण जयंती समारोहों के अवसर पर दूरदर्शन ने एक सीरीज उत्तर-दक्षिण जुगलबन्दी की बनाई जिसमें पण्डित भीमसेन जोशी के साथ विद्वान एम0 बालमुरलीकृष्णन के गायन की जुगलबन्दी में उन्हें लम्बे समय तक सुना और अभिभूत हुआ. अब तो मैं यदा-कदा बालमुरलीकृष्णन जी को सुनने लगा था तथा उनका प्रशंसक बन चुका था.

प्रत्यक्ष रूप से उन्हें देखने का मौका मिला वर्ष 2003 में, जब चेन्नई की सुप्रसिद्ध मद्रास म्यूज़िक अकादमी में प्रख्यात गायक पद्मभूषण विद्वान टी वी शंकरनारायणन को उस वर्ष का संगीत कलानिधि अवार्ड मिलने वाला था. अलंकरण समारोह में मुख्य अतिथि थे विद्वान एम0 बालमुरलीकृष्णन जी. मुझे आज भी याद है उस समारोह का गरिमामय वातावरण. अलंकरण के बाद विद्वान टी0 वी0 शंकरनारायणन जी को स्वीकृति-भाषण के लिए बुलाया गया. उनके तमिल और अंग्रेजी के मिले जुले भाषण में जो बात मुझे याद रह गयी वह यह थी कि बालमुरलीकृष्णन जी उनके कॉलेज के दिनों के हीरो थे. उनके ही पदचिन्हों पर चलते हुए आज शंकरनारायणन जी को यह मुकाम हासिल हुआ है. यह सब होने के पश्चात जब  विद्वान एम0 बालमुरलीकृष्णन जी को भाषण के लिए बुलाया गया, तो हाल में उपस्थित हर व्यक्ति ने खड़े होकर तालियाँ बजाते हुए जिस अंदाज़ में उनका स्वागत किया, वह अविस्मरणीय है.

प्रत्यक्ष रूप से उनका गायन सुनने का अवसर बहुत बाद में दिल्ली में आया. पर टी0 वी0  पर तथा यूट्यूब पर उनका गायन हमेशा सुनता रहता था. विशेष रूप से उनके गाये हुए 3 स्वरों तथा 4 स्वरों वाले रागों का गायन अद्भुत है. राग नियमों का पालन न करते हुए जो राग उन्होंने बनाये तथा उनमें कृतियाँ भी बनायीं, वह उनकी प्रतिभा का लोहा मनवा कर  ही रहती है. गायन ही नहीं वायलिन के भी वे अप्रतिम कलाकार थे.

उत्तर तथा दक्षिण भारतीय संगीत शैलियों को निकट लाने में उनका योगदान कभी भूला नहीं जा सकता. मेरे तथा संगीत जगत की ओर से  विद्वान एम0 बालमुरलीकृष्णन जी को श्रद्धांजली।