सांस्कृतिक पत्रकारिता विषय पर कार्यशाला का कहीं आयोजन हुआ हो, ऐसा पहले तो नहीं सुना। पटना के 'विश्व संवाद केंद्र' के द्वारा जब इस कार्यशाला में रिसोर्स पर्सन के रूप में आने का निमंत्रण मिला तो मैं भी सोच में पड़ गया। पत्रकारों से मेरा पाला तो हमेशा ही पड़ता है पर उन को कुछ समझाना मुझे हमेशा से टेढ़ी खीर लगती रही है। फिर भी ... चुनौती को स्वीकार किया तथा ३ जुलाई को रात्री पटना पहुँच गया।
स्टेशन पर पटना के रोशन जी तथा अशोक तिवारी जी लेने के लिए आये हुए थे। रोशन जी पटना के पुराने रईस हैं. उनके घर पर ही ठहरने की व्यवस्था थी. मैं होटलों में ठहरने का आदी हूँ, पर रोशन जी के घर जा कर ऐसा लगा मानो मंदिर में जा रहा हूँ। मुझसे पूर्व उनके घर जिन महानुभावों का पदार्पण हो चूका था उनमें डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद, पंडित ओमकार नाथ ठाकुर, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान तथा अन्य कई विभूतियाँ शामिल थीं।
अगले दिन सुबह विश्व संवाद केंद्र के सुंदर से हाल में चल रही कार्यशाला में भाग लेने पहुंचा। अभी हाल में दाखिल ही हुआ था की एक चिर परिचित रोबदार आवाज़ ने दरवाज़े से ही स्वागत किया - ' आओ चेतन आओ!' देखा मंच पर पद्मश्री की उपाधि से अलंकृत तथा बिहार संगीत नाटक अकादमी के पूर्व सचिव श्रद्धेय गजेन्द्र नारायण सिंह जी बुला रहे थे। कार्यशाला में प्रथम कक्षा उन्होंने ही ली। विषय था - संगीत जगत को खान साहबों का योगदान। बोलने के क्रम में उन्होंने जो संस्मरण सुनाये वे लाजवाब थे तथा शोध परक तथ्यों से भरे हुए थे। लगभग एक घंटा धाराप्रवाह बोलने के बाद एक छोटा सा ब्रेक हुआ तथा बोलने के लिए मुझे बुलाया गया। तत्पश्चात मैंने संगीत, संस्कार, संस्कृति, कलाकार, राग तथा ऐसे ही कुछ शब्दों की विस्तृत चर्चा की जिनसे पत्रकारों को लेखन के कर्म में अक्सर पाला पड़ता है. कार्यशाला में लगभग ३० शिक्षार्थी भाग ले रहे थे.
सांस्कृतिक पत्रकारिता के समबन्ध में कुछ टिप्स देने के बाद मैं बैठ गया। प्रश्नोत्तर कार्यक्रम के बाद कार्यशाला का समापन समारोह आयोजित था। संपूर्ण कक्षा लगभग ५ घंटों की थी तथा गजेन्द्र जी ७५ वर्षों की आयु के बावजूद पूरे समय बैठे रहे तथा मेरी हौसला अफजाई करते रहे, यह मेरा सौभाग्य था। तीन दिनों की कार्यशाला में जिन अन्य विद्वानों ने भागीदारी की उनमें पटना आर्ट कालेज के पूर्व प्राचार्य तथा अंतर्राष्ट्रीय चित्रकार श्री श्याम शर्मा जी, काशी हिन्दू विश्व विद्यालय के ललित कला संकाय से श्री सुनील विश्वकर्मा जी, वरिष्ठ पत्रकार श्री रवि किरण जी प्रमुख थे। इतने सारे विद्वानों के बीच बैठना अपने आप में एक गौरव की बात थी। बहुत ही अच्छे ढंग से बीते समय व कई यादों की थाती संजोये मैं वापसी के लिए निकल पड़ा।
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स्टेशन पर पटना के रोशन जी तथा अशोक तिवारी जी लेने के लिए आये हुए थे। रोशन जी पटना के पुराने रईस हैं. उनके घर पर ही ठहरने की व्यवस्था थी. मैं होटलों में ठहरने का आदी हूँ, पर रोशन जी के घर जा कर ऐसा लगा मानो मंदिर में जा रहा हूँ। मुझसे पूर्व उनके घर जिन महानुभावों का पदार्पण हो चूका था उनमें डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद, पंडित ओमकार नाथ ठाकुर, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान तथा अन्य कई विभूतियाँ शामिल थीं।
अगले दिन सुबह विश्व संवाद केंद्र के सुंदर से हाल में चल रही कार्यशाला में भाग लेने पहुंचा। अभी हाल में दाखिल ही हुआ था की एक चिर परिचित रोबदार आवाज़ ने दरवाज़े से ही स्वागत किया - ' आओ चेतन आओ!' देखा मंच पर पद्मश्री की उपाधि से अलंकृत तथा बिहार संगीत नाटक अकादमी के पूर्व सचिव श्रद्धेय गजेन्द्र नारायण सिंह जी बुला रहे थे। कार्यशाला में प्रथम कक्षा उन्होंने ही ली। विषय था - संगीत जगत को खान साहबों का योगदान। बोलने के क्रम में उन्होंने जो संस्मरण सुनाये वे लाजवाब थे तथा शोध परक तथ्यों से भरे हुए थे। लगभग एक घंटा धाराप्रवाह बोलने के बाद एक छोटा सा ब्रेक हुआ तथा बोलने के लिए मुझे बुलाया गया। तत्पश्चात मैंने संगीत, संस्कार, संस्कृति, कलाकार, राग तथा ऐसे ही कुछ शब्दों की विस्तृत चर्चा की जिनसे पत्रकारों को लेखन के कर्म में अक्सर पाला पड़ता है. कार्यशाला में लगभग ३० शिक्षार्थी भाग ले रहे थे.
सांस्कृतिक पत्रकारिता के समबन्ध में कुछ टिप्स देने के बाद मैं बैठ गया। प्रश्नोत्तर कार्यक्रम के बाद कार्यशाला का समापन समारोह आयोजित था। संपूर्ण कक्षा लगभग ५ घंटों की थी तथा गजेन्द्र जी ७५ वर्षों की आयु के बावजूद पूरे समय बैठे रहे तथा मेरी हौसला अफजाई करते रहे, यह मेरा सौभाग्य था। तीन दिनों की कार्यशाला में जिन अन्य विद्वानों ने भागीदारी की उनमें पटना आर्ट कालेज के पूर्व प्राचार्य तथा अंतर्राष्ट्रीय चित्रकार श्री श्याम शर्मा जी, काशी हिन्दू विश्व विद्यालय के ललित कला संकाय से श्री सुनील विश्वकर्मा जी, वरिष्ठ पत्रकार श्री रवि किरण जी प्रमुख थे। इतने सारे विद्वानों के बीच बैठना अपने आप में एक गौरव की बात थी। बहुत ही अच्छे ढंग से बीते समय व कई यादों की थाती संजोये मैं वापसी के लिए निकल पड़ा।
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ब्लॉग्स की दुनिया में मैं आपका खैरकदम करता हूं, जो पहले आ गए उनको भी सलाम और जो मेरी तरह देर कर गए उनका भी देर से लेकिन दुरूस्त स्वागत। मैंने बनाया है रफटफ स्टॉक, जहां कुछ काम का है कुछ नाम का पर सब मुफत का और सब लुत्फ का, यहां आपको तकनीक की तमाशा भी मिलेगा और अदब की गहराई भी। आइए, देखिए और यह छोटी सी कोशिश अच्छी लगे तो आते भी रहिएगा
ReplyDeletehttp://ruftufstock.blogspot.com/
apki safalta ke liye badhai aur aane wale kal ke liye anekon shubhkamnayen.
ReplyDeleteहार्दिक बधाई तथा शुभकामनाएं
ReplyDeletereally nice
ReplyDeleteAap sabhi ka bahut dhanyavaad. Abhi blogging seekh raha hun. Housala afzai karte rahiyega.
ReplyDeleteGuruji
ReplyDeleteEven in Silchar the reporter wants to have the workshops on cultural page reporting. Nice to read
Prosenjit