नोआमुंडी से आकर क्लास ५ में मेरा एडमिशन हुआ. उस समय मेरे पिताजी चास की गुजरात कोलोनी में रहा करते थे. उनका चाय पत्ती का व्यापार था. निम्न मध्यम वर्ग के परिवार की सारी समस्याओं का दर्पण था मेरा परिवार. एक कमरे का घर, उसमें हम चार लोग - मैं, छोटी बहन, माँ और पिताजी. साइकल पर सवार हो कर सुबह सवेरे जोधाडीह मोड़ के रामरुद्र उच्च विद्यालय जाना और दोपहर तक लौट आना. फिर शाम को दोस्तों के साथ घूमने के लिए बोकारो जाना. यहाँ बताना उचित होगा की चास और बोकारो में सिर्फ एक नदी गर्गा की सीमा रेखा है. नदी पर बने पुल के इस पार बसा है चास और उस पार बोकारो. बोकारो शहर बोकारो स्टील प्लांट के द्वारा बसाया गया आधुनिक शहर है जबकी चास स्थानीय निवासियों का पुराना शहर है. बोकारो की सफाई, चौड़ी सडकें, बिजली-पानी की अनवरत सुविधा और वहां के सुंदर आवास, चास के लोगों को आकर्षित करने के लिए काफी थे. बचपन में स्कूल की तो अनगिनत यादें जुडी हुई हैं.
रामरुद्र उच्च विद्यालय की कक्षा ५ में मेरा एडमिशन हुआ १९७७ में. यही वर्ष था जब मेरा आगमन पूरी तरह से चास में हुआ. नोआमुंडी की सुंदर वादियों से चास शहर की चहल पहल में आना एक प्रकार का सांस्कृतिक परिवर्तन था मेरे लिए. स्कूल में जो मित्र शुरुआत में बने उनमें बदरी प्रसाद, बलराम सिंह, रसपाल सिंह, राजाराम, राहुल दोषी, विजय मेहता, सुभाष अग्रवाल, सतीश इत्यादि प्रमुख थे. बलराम का कक्षा ९ में दुखद देहांत हो गया. रसपाल सिंह, राजाराम, राहुल दोषी और सुभाष अग्रवाल अभी भी सम्पर्क में हैं. रामरुद्र उच्च विद्यालय का बहुत बड़ा परिसर था. एक छोटा सा होस्टल भी था जिसकी सब्जियों की आवश्यकता विद्यालय के किचन गार्डन से ही हो जाती थी. उसी बगीचे में बांस का एक झुरमुट भी था, जो हम दोस्तों का अड्डा हुआ करता था.
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