एक संगीत चैनल देख रहा था. चैनल का भारत में पदार्पण पाश्चात्य संगीत को प्रसिद्धि दिलाने के लिए हुआ था. पाश्चात्य संगीत को प्रसिद्धि दिलाने के चक्कर में अचानक चैनल वालों को लगा की उनकी अपनी ही प्रसिद्धि पर प्रश्न चिन्ह लग रहा है. कुबेर के भंडार पाने के चक्कर में कहीं गाँठ की चवन्नी ही न चली जाये, अतः उन लोगों ने तुरंत अपनी रणनीति बदली. अब भारतीय संगीत पर उनकी कृपा दृष्टि पड़नी लाजमी थी. आखिर पापी पेट का सवाल था. सो मन मसोस कर पाश्चात्य तथा भारतीय संगीत के त्रिशंकु संस्करण अर्थात फिल्म संगीत की नदिया ही उलीचने लगे. बहुत वर्षों तक यह चला. पर फिल्म संगीत पर आधारित और भी चैनल उन पर भारी पड़ने लगे. एक बार पुन अस्तित्व का संकट था.
कहा जाता है की चोर चोरी से जाये पर हेरा फेरी से न जाए. मन में कहीं यह फाँस तो धंसी ही थी कि आप अपने मूल उद्देश्य से हट रहे हैं. अब प्रश्न था कि किया क्या जाये? फिल्म संगीत तो पुराना आइडिया हो गया था. कोई नया जाल बिछाना ज़रूरी था दर्शकों को खींच कर लाने के लिए. अब उनकी नजर पड़ी लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत पर. अब तक इन पर किसी "ऐसे" चैनल की कृपादृष्टि नहीं पड़ी थी, सो लगभग अछूता क्षेत्र था. बस फिर क्या था, शुरू हो गये. लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत के कुछ नामी कलाकारों और पाश्चात्य संगीत के कुछ कलाकारों को ले केर एक कार्यक्रम श्रृंखला बना डाली.
कार्यक्रम श्रृंखला में एक बात का पूरा ध्यान रखा गया. कभी भी भारतीय पदधति को तरजीह नहीं दी गयी. ज्यादातर शास्त्रीय संगीत के कलाकारों को खड़ा कर के गवाया गया. यह उन कलाकारों के लिए एक अस्वाभाविक तरीका है जिन्होनें सारी ज़िन्दगी जमीन पैर बैठ कर रियाज़ किया. कुछ विचित्र बालों वाले वाद्य कलाकारों को उनके साथ पाश्चात्य वाद्यों के साथ लगाया गया और बन गया कार्यक्रम - आधा तीतर आधा बटेर! यही स्थिति लोक कलाकारों के साथ भी हुई. कुल मिला कर कुछ ऐसा स्वाद बना की जैसे चीनी के साथ नमक या मिर्च के साथ गुड.
मुझे यह नहीं समझ पड़ता की जिस लोक या शास्त्रीय परम्परा के कार्यक्रम इतने लोकप्रिय हैं, उन्हें उसी रूप में क्यों नहीं दिखाया जा सकता? आप सच से दूर क्यों रहना चाहते हैं? क्या इसमें आपका कोई निहित स्वार्थ आड़े आता है? आप अक्सर पाश्चात्य संगीत के लाइव कार्यक्रम दिखाते हैं. क्यों नहीं ऐसा हो कि कभी मशहूर लोक या शास्त्रीय संगीत के कलाकारों के लाइव कार्यक्रम दिखाए जाएँ? आपकी कौन सी मानसिकता इसमें आड़े आती है?
इन सारे सवालों के जवाब मुझे तो आज तक नहीं मिले, अगर आपको मिल जाएँ तो ज़रूर बताइयेगा. धन्यवाद.
कहा जाता है की चोर चोरी से जाये पर हेरा फेरी से न जाए. मन में कहीं यह फाँस तो धंसी ही थी कि आप अपने मूल उद्देश्य से हट रहे हैं. अब प्रश्न था कि किया क्या जाये? फिल्म संगीत तो पुराना आइडिया हो गया था. कोई नया जाल बिछाना ज़रूरी था दर्शकों को खींच कर लाने के लिए. अब उनकी नजर पड़ी लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत पर. अब तक इन पर किसी "ऐसे" चैनल की कृपादृष्टि नहीं पड़ी थी, सो लगभग अछूता क्षेत्र था. बस फिर क्या था, शुरू हो गये. लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत के कुछ नामी कलाकारों और पाश्चात्य संगीत के कुछ कलाकारों को ले केर एक कार्यक्रम श्रृंखला बना डाली.
कार्यक्रम श्रृंखला में एक बात का पूरा ध्यान रखा गया. कभी भी भारतीय पदधति को तरजीह नहीं दी गयी. ज्यादातर शास्त्रीय संगीत के कलाकारों को खड़ा कर के गवाया गया. यह उन कलाकारों के लिए एक अस्वाभाविक तरीका है जिन्होनें सारी ज़िन्दगी जमीन पैर बैठ कर रियाज़ किया. कुछ विचित्र बालों वाले वाद्य कलाकारों को उनके साथ पाश्चात्य वाद्यों के साथ लगाया गया और बन गया कार्यक्रम - आधा तीतर आधा बटेर! यही स्थिति लोक कलाकारों के साथ भी हुई. कुल मिला कर कुछ ऐसा स्वाद बना की जैसे चीनी के साथ नमक या मिर्च के साथ गुड.
मुझे यह नहीं समझ पड़ता की जिस लोक या शास्त्रीय परम्परा के कार्यक्रम इतने लोकप्रिय हैं, उन्हें उसी रूप में क्यों नहीं दिखाया जा सकता? आप सच से दूर क्यों रहना चाहते हैं? क्या इसमें आपका कोई निहित स्वार्थ आड़े आता है? आप अक्सर पाश्चात्य संगीत के लाइव कार्यक्रम दिखाते हैं. क्यों नहीं ऐसा हो कि कभी मशहूर लोक या शास्त्रीय संगीत के कलाकारों के लाइव कार्यक्रम दिखाए जाएँ? आपकी कौन सी मानसिकता इसमें आड़े आती है?
इन सारे सवालों के जवाब मुझे तो आज तक नहीं मिले, अगर आपको मिल जाएँ तो ज़रूर बताइयेगा. धन्यवाद.
Sir,, aapne aise sawal poochhe hain jinka jawab dena bahut mushkil hai kyonki jawab dene ke liye apne gireban mein jhank kar dekhna padega.........
ReplyDeleteSir.
ReplyDeleteThis was done and is being intentionally promoted left right and centre just to satisfy marketing need. They say art is to be a product which has to be marketed and get sold at any cost, unlike as we feel, say and promote that art is a medium to reach The God or to know The Self or for art is for Life....
Thanks Shubhangie and Prosenjit. I know that day is not far away when people will not hesitate to sell even the holiest relationships for few paise and that is what bothers me..
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