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New Delhi, Delhi, India
Flutist of Indian Classical music genre

Monday, May 31, 2010

मेरी बांसुरी


सुर तो सारे ही अपने हैं, सपने भी सारे अपने हैं,
सुनना भी और गुनना भी, फिर सब कुछ पाना अपना है,
तब जिस खातिर इतना मोल लिया वह बंसी मेरी क्यों ना हो,
बंसी के हर छेद पे मेरा हस्ताक्षर फिर क्यों न हो,
प्रतिबिम्ब मेरा, मेरी कहानी, मेरा जीवन मेरी जुबानी,
है तो मेरी, बाँसुरी मेरी है, पर सुर की सरिता सभी की है,

मेरी बाँसुरी मेरी है, पर साझेदारी सब की है.

4 comments:

  1. Bahut hi sundar tukbandi aur bhav hai kavita me.achha laga.

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  2. One good thing about music, when it hits you, you feel no pain....

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  3. Bahut hi sundar vabh apki kabita me. Ab samajh aya "ek sadhe sab sadhe" ka motlab, ap silchar ki pahela karyakram me kahe the.

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  4. Thanks a lot for your comments Rajeev, Prosenjit and Ritu!

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