भाई साहब ••••
क्या है?
मेरी बारी कब आएगी ••••
किस बात की बारी?
मेरे कार्यक्रम कब करवाएंगे आप ••••
कार्यक्रम! ... आप कौन हैं भाई ?
जी मैं तो एक कलाकार हूँ ••••
अच्छा, कलाकार हैं आप?
जी हाँ ••••
तो हमारे पास क्यों आये हैं?
जी मैंने सुना है की आप कलाकारों के कार्यक्रम आयोजित करवाते हैं ....
हम तो स्कूलों और कॉलेजों में आयोजित करवाते हैं, वो भी मुफ़्त
पर मैंने तो सुना है की आप कुछ मानधन भी देते हैं कलाकारों को
हाँ थोड़ा बहुत दे देते हैं। हमारे पास पैसा ही कहाँ है?
पर मैंने तो सुना है की आपको करोड़ों के सरकारी अनुदान मिलते हैं
वो तो ज़रूरत का बहुत छोटा हिस्सा मिलता है
और गैर सरकारी अनुदान भी तो मिलते हैं!
अच्छा अच्छा बहुत जानते हैं आप! यहाँ क्यों आये?
जी, कार्यक्रम के लिए ....
कैसे कलाकार हैं आप ? आपकी क्या योग्यता है?
जी मेरी योग्यता में कोई कमी नहीं है ••••
वो तो मेरे पास आने वाले सब ऐसा ही कहते हैं।
तो आपके अनुसार योग्यता का क्या मापदंड है?
आप पद्म या अकादमी पुरस्कार प्राप्त तो पक्का नहीं ही हो ••••
जी आपको तो सब पता ही है ..... सही कहा आपने ••••
यार, तुम्हारे माता- पिता कलाकार हैं क्या?
नहीं, नहीं! ..... वे तो साधारण गृहस्थ थे ••••
तुम्हारे ख़ानदान में कोई बड़ा कलाकार?
जी नहीं। बड़ा तो क्या, दुर्भाग्य से मेरा कोई भी पुरखा सामान्य कलाकार भी नहीं था .....
फ़िर कैसे?
जी? मैं समझा नहीं ••••
अरे भाई फिर कैसे कार्यक्रम दू्ँ मैं तुम्हें?
जी इसमें कोई दिक्कत है क्या?
एक हो तो बताएँ।
जी फिर भी कुछ पता तो चले ••••••
बताया तो ••••••
जी मैं समझा नहीं ••••••
क्या समझा नहीं समझा नहीं?? ...... अरे भाई, या तो पुरस्कृत बनो या किसी स्टार के पुत्र ••••••
पर इन दोनों बातों पर मेरा नियंत्रण तो है नहीं ••••••
क्या मतलब?
जी पुरस्कार हेतु गठित चयन समिति मेरी क्षमता जान कर भी अन्जान बन जाती है •••••• कई वर्षों से मेरा नाम अग्रसारित होता है पर पुरस्कार नहीं मिलता और......
और क्या?
और रही किसी स्टार कलाकार से मेरे रिश्ते की बात, तो मेरे माता -पिता कौन हों इस पर मेरा कोई नियंत्रण तो है नहीं ••••••
बड़े बदतमीज हो?
माफ़ी चाहता हूँ, पर मैंने जो कुछ भी कहा है, सच कहा है ••••••
अपना सच अपने पास ही रखो। मेरा दिमाग खराब मत करो।
जी नहीं कहूँगा। पर कार्यक्रम तो देंगे ना?
आखिर हमसे कार्यक्रम क्यों चाहते हो? हम तो पैसे भी नहीं देते .....
पैसे तो देते हैं ...
वो तो ऊँट के मुंह में जीरे के समान है ..
फिर भी मैं तैयार हूँ .....
हमारे तो कार्यक्रम भी बड़े ऑडिटोरियम में नहीं होते।
मैं इसके लिए तैयार हूँ ....
स्कूलों - कालेजों में बच्चों के बीच कार्यक्रम प्रस्तुति देनी होती है। सुविधाएं भी कम हैं ....
इसके लिए भी मैं तैयार हूँ .....
एक दिन में कई कई कार्यक्रम करने पड़ते हैं। कई बार तो आराम का मौका भी नहीं मिलता ....
फिर भी मैं तैयार हूँ .....
उफ़्फ़ .... आखिर मुफ़्त में कार्यक्रम करने को इतने उतावले क्यों हो ?
उसी कारण से, जिसके लिए बाकी स्टार पुत्र उतावले हैं ....
वे तो समाज और कला - संस्कृति की सेवा करने को उतावले हैं ....
यदि ऐसा आपको लगता है तो मुझे यह मौका क्यों नहीं देते?
यानि?
मैं भी तो समाज की सेवा करना चाहता हूँ ....
तो खुद करो। हमारी सहायता क्यों चाहते हो?
वही ऊँट के मुंह में जीरे के लिए ....
भूल जाओ ....
जी?
तुम्हें कोई कार्यक्रम नहीं मिलेगा। यह मुँह और मसूर की दाल ?
पर मुझसे कम योग्य कलाकारों को तो आपने कार्यक्रम दिए हैं?
इसलिए दिए हैं, क्योंकि वे कोई एक योग्यता रखते हैं
यानी?
यानि पुरस्कृत हैं अथवा स्टार पुत्र या पुत्री हैं
पर....
क्या पर ?
पर कुछ तो ऐसे भी हैं जिनमें यह दोनों योग्यताएं नहीं हैं ...
वे हमारी संस्था के वरिष्ठ लोगों की संस्तुति से आये हैं
तो मुझे भी संस्तुति दीजिये न अपनी ....
नहीं देंगे।
क्यों?
हमारी मर्ज़ी! ...
पर ..
कोई पर- वर नहीं
आखिर यह तो योग्यता का निरादर है ......
पड़ा होता रहे निरादर। नियम का पालन तो करना ही होगा।
पर यह तो नियम ही अन्याय कर रहा है मेरे साथ .......
तो क्या करें?
तो ऐसे नियमों को तो बदल देना चाहिए ना ...
नियम बदल दें? कल को तुम कहोगे संस्था ही बदल दें ...
आप नहीं बदलेंगे तो समय बदल देगा। बेहतर है समय रहते पहले आप बदल जाएँ। अब वह ज़माने गए जब आपका हुक्म ही सर्वोपरि होता था। अब तो सरकार भी बदली है और निज़ाम भी। समय रहते होश में आ गए तो ठीक है, वर्ना ....
वरना क्या?
क्या है?
मेरी बारी कब आएगी ••••
किस बात की बारी?
मेरे कार्यक्रम कब करवाएंगे आप ••••
कार्यक्रम! ... आप कौन हैं भाई ?
जी मैं तो एक कलाकार हूँ ••••
अच्छा, कलाकार हैं आप?
जी हाँ ••••
तो हमारे पास क्यों आये हैं?
जी मैंने सुना है की आप कलाकारों के कार्यक्रम आयोजित करवाते हैं ....
हम तो स्कूलों और कॉलेजों में आयोजित करवाते हैं, वो भी मुफ़्त
पर मैंने तो सुना है की आप कुछ मानधन भी देते हैं कलाकारों को
हाँ थोड़ा बहुत दे देते हैं। हमारे पास पैसा ही कहाँ है?
पर मैंने तो सुना है की आपको करोड़ों के सरकारी अनुदान मिलते हैं
वो तो ज़रूरत का बहुत छोटा हिस्सा मिलता है
और गैर सरकारी अनुदान भी तो मिलते हैं!
अच्छा अच्छा बहुत जानते हैं आप! यहाँ क्यों आये?
जी, कार्यक्रम के लिए ....
कैसे कलाकार हैं आप ? आपकी क्या योग्यता है?
जी मेरी योग्यता में कोई कमी नहीं है ••••
वो तो मेरे पास आने वाले सब ऐसा ही कहते हैं।
तो आपके अनुसार योग्यता का क्या मापदंड है?
आप पद्म या अकादमी पुरस्कार प्राप्त तो पक्का नहीं ही हो ••••
जी आपको तो सब पता ही है ..... सही कहा आपने ••••
यार, तुम्हारे माता- पिता कलाकार हैं क्या?
नहीं, नहीं! ..... वे तो साधारण गृहस्थ थे ••••
तुम्हारे ख़ानदान में कोई बड़ा कलाकार?
जी नहीं। बड़ा तो क्या, दुर्भाग्य से मेरा कोई भी पुरखा सामान्य कलाकार भी नहीं था .....
फ़िर कैसे?
जी? मैं समझा नहीं ••••
अरे भाई फिर कैसे कार्यक्रम दू्ँ मैं तुम्हें?
जी इसमें कोई दिक्कत है क्या?
एक हो तो बताएँ।
जी फिर भी कुछ पता तो चले ••••••
बताया तो ••••••
जी मैं समझा नहीं ••••••
क्या समझा नहीं समझा नहीं?? ...... अरे भाई, या तो पुरस्कृत बनो या किसी स्टार के पुत्र ••••••
पर इन दोनों बातों पर मेरा नियंत्रण तो है नहीं ••••••
क्या मतलब?
जी पुरस्कार हेतु गठित चयन समिति मेरी क्षमता जान कर भी अन्जान बन जाती है •••••• कई वर्षों से मेरा नाम अग्रसारित होता है पर पुरस्कार नहीं मिलता और......
और क्या?
और रही किसी स्टार कलाकार से मेरे रिश्ते की बात, तो मेरे माता -पिता कौन हों इस पर मेरा कोई नियंत्रण तो है नहीं ••••••
बड़े बदतमीज हो?
माफ़ी चाहता हूँ, पर मैंने जो कुछ भी कहा है, सच कहा है ••••••
अपना सच अपने पास ही रखो। मेरा दिमाग खराब मत करो।
जी नहीं कहूँगा। पर कार्यक्रम तो देंगे ना?
आखिर हमसे कार्यक्रम क्यों चाहते हो? हम तो पैसे भी नहीं देते .....
पैसे तो देते हैं ...
वो तो ऊँट के मुंह में जीरे के समान है ..
फिर भी मैं तैयार हूँ .....
हमारे तो कार्यक्रम भी बड़े ऑडिटोरियम में नहीं होते।
मैं इसके लिए तैयार हूँ ....
स्कूलों - कालेजों में बच्चों के बीच कार्यक्रम प्रस्तुति देनी होती है। सुविधाएं भी कम हैं ....
इसके लिए भी मैं तैयार हूँ .....
एक दिन में कई कई कार्यक्रम करने पड़ते हैं। कई बार तो आराम का मौका भी नहीं मिलता ....
फिर भी मैं तैयार हूँ .....
उफ़्फ़ .... आखिर मुफ़्त में कार्यक्रम करने को इतने उतावले क्यों हो ?
उसी कारण से, जिसके लिए बाकी स्टार पुत्र उतावले हैं ....
वे तो समाज और कला - संस्कृति की सेवा करने को उतावले हैं ....
यदि ऐसा आपको लगता है तो मुझे यह मौका क्यों नहीं देते?
यानि?
मैं भी तो समाज की सेवा करना चाहता हूँ ....
तो खुद करो। हमारी सहायता क्यों चाहते हो?
वही ऊँट के मुंह में जीरे के लिए ....
भूल जाओ ....
जी?
तुम्हें कोई कार्यक्रम नहीं मिलेगा। यह मुँह और मसूर की दाल ?
पर मुझसे कम योग्य कलाकारों को तो आपने कार्यक्रम दिए हैं?
इसलिए दिए हैं, क्योंकि वे कोई एक योग्यता रखते हैं
यानी?
यानि पुरस्कृत हैं अथवा स्टार पुत्र या पुत्री हैं
पर....
क्या पर ?
पर कुछ तो ऐसे भी हैं जिनमें यह दोनों योग्यताएं नहीं हैं ...
वे हमारी संस्था के वरिष्ठ लोगों की संस्तुति से आये हैं
तो मुझे भी संस्तुति दीजिये न अपनी ....
नहीं देंगे।
क्यों?
हमारी मर्ज़ी! ...
पर ..
कोई पर- वर नहीं
आखिर यह तो योग्यता का निरादर है ......
पड़ा होता रहे निरादर। नियम का पालन तो करना ही होगा।
पर यह तो नियम ही अन्याय कर रहा है मेरे साथ .......
तो क्या करें?
तो ऐसे नियमों को तो बदल देना चाहिए ना ...
नियम बदल दें? कल को तुम कहोगे संस्था ही बदल दें ...
आप नहीं बदलेंगे तो समय बदल देगा। बेहतर है समय रहते पहले आप बदल जाएँ। अब वह ज़माने गए जब आपका हुक्म ही सर्वोपरि होता था। अब तो सरकार भी बदली है और निज़ाम भी। समय रहते होश में आ गए तो ठीक है, वर्ना ....
वरना क्या?
वरना होश उड़ जायेंगे। मैं चला।